28 जुलाई 2011

शादी की दास्ताँ

शादी की दास्ताँ 

अभी शादी का पहला ही साल था 
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था 
खुशियाँ कुछ यूँ उमड़ रही थी 
की संभाले नहीं संभल रही थी 
सुबह सुबह मैडम का चाय लेकर आना 
थोडा शर्माते हुए हमे नींद से जगाना 
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिराना
मुस्कुराते हुए कहना की डार्लिंग चाय पी लो 
जल्दी से रेडी हो जाओ 
आप को ऑफिस भी है जाना 


घरवाली भगवान का रूप ले केर आई थी 
दिल और दिमाग पैर पूरी तरह छाई थी 
सांस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था 
एक पल भी दूर जाना दुश्वार होता था 



शादी के ५ साल बाद 

सुबह सुबह मैडम का चाय लेकर आना 
टेबल पर पटक कर जोर से चिल्लाना 
आज ऑफिस जाओ तो मुन्ना को स्कूल छोडते हुए जाना ..
एक बार फिर वही आवाज़ आई 
क्या बात है अभी तक छोड़ी नहीं चारपाई 
अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना 
मुन्ना की टीचर को खुद ही संभाल लेना 

न जाने घरवाली कैसा रूप लेकर आई थी 
दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी 
सांस भी लेते हैं तो उन्ही का ख़याल होता है 
हेर समय जेहान में एक ही सवाल होता है 
क्या कभी वो दिन लौट कर आयेंगे 
हम एक बार फिर कुंवारे बन पायेंगे 


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