एक ये ख्वाहिश कि कोई ज़ख़्म ना देखे दिल का...
एक ये हसरत की कोई देखने वाला होता ....
और क्या इससे जयादा नरमी बरतें...
अपने ज़ख्मो भी छुआ है तेरे गालों की तरह...
किस किस गली में मेरा मज़ार नहीं जहाँ हुस्न देखा वहीँ मर गया...
चेहरा बता रहा है मरा है भूक से
और लोग कह रहे हैं की कुछ खा कर मरा है ....
और लोग कह रहे हैं की कुछ खा कर मरा है ....
मुझे लिख केर कहीं महफूज़ कर लो ..
तुम्हारी बातों से निकलता जा रहा हूँ मैं ..
ये भूल है उसकी की आगाज़ ए गुफ्तगू हम करेंगे
हम तो खुद से भी रूठ जायें तो सदियों खामोश रहते हैं ...
हम तो खुद से भी रूठ जायें तो सदियों खामोश रहते हैं ...
जहाँ तक के खुला आस्मां बाकी है, मैं जानता हूँ मेरी उड़ान बाकी है..
नया सफ़र तो अभी शुरू किया है मगर; हासिल जो करने है, कई मुकाम बाकी है...
नया सफ़र तो अभी शुरू किया है मगर; हासिल जो करने है, कई मुकाम बाकी है...
बड़ी तब्दीलियाँ लायें हैं अपने आप में लेकिन;
तुम्हे बस याद करने की, वो आदत अभी बाकी है...
तुम्हे बस याद करने की, वो आदत अभी बाकी है...
किसी से जुदा होना इतना आसान होता फ़राज़
तो जिस्म से रूह को लेने फ़रिश्ते नहीं आते...
तो जिस्म से रूह को लेने फ़रिश्ते नहीं आते...
रहता हूँ मयखाने में तो शराबी न समझ मुझे...
हर वो शक्श जो मस्जिद से निकले नमाज़ी नहीं होता ...
हर वो शक्श जो मस्जिद से निकले नमाज़ी नहीं होता ...
अब उसे रोज़ ना सोचूं तो बदन टूटता है,
इक उम्र हो गयी है उसकी याद का नशा करते करते..
इक उम्र हो गयी है उसकी याद का नशा करते करते..
फ़क़त ख्वाबो से ही नहीं मिलता सुकून सोने का..,,
किसी की याद में रात भर जागने का भी अपना मज़ा है ..
किसी की याद में रात भर जागने का भी अपना मज़ा है ..
उसकी मासूमियत मैं इतना असर था ..
खरीद ली उसने एक हे मुलाक़ात मैं जिंदगी हमारी ...
लिखना तो था के खुश हूँ , तेरे बग़ैर भी ...
आंसू मगर कलम से पहले ही गिर गए ...
आंसू मगर कलम से पहले ही गिर गए ...
मुझे अपनी ज़रुरत पढ़ गयी है ..
मुझे कहीं से ढूँढ लो तुम .....
मुझे कहीं से ढूँढ लो तुम .....
बदनाम करते हैं लोग हमे शहर मैं जिन के नाम से ..
कसम उस शक्श की उसे कभी जी भर के देखा भी नहीं ..
उसे था यकीन की मैं उसके लिए जान न दे पाऊंगा ..
और मुझे था खौफ की वो रोएगी मुझे आजमाने के बाद ...
उसको चाहा तो मोहब्बत कि समझ आई ,
वरना इस लफ्ज़ कि सिर्फ तारीफ ही सुना करते थे : )
वरना इस लफ्ज़ कि सिर्फ तारीफ ही सुना करते थे : )
तुम हकीकत को या फरेब मेरी आँखों का ..
न दिल से निकलते हो न जिंदगी मैं आते हो ...
लोग तो खोटे सिक्के तक तो आजमाते हैं दोस्त..
फिर तेरी मेरी कीमत लगे तो गलत क्या होगा ..
यूँ न खींच अपनी तरफ मुझे बेबस करके ...
की खुद से भी बिछड़ जाऊं और तू भी न मिले ..
तन्हाई तो है साथी अपनी जिंदगी कर हेर एक पल की ..
चलो ये शिकवा भी दूर हुआ की किसी ने साथ नहीं दिया ..
एहसास बदल जाता है और कुछ नहीं ..
वर्ना मोहब्बत और नफरत एक ही दिल करता है ..
न जाने कितने टुकड़ों मैं बंट गया है वजूद ..
तुझे भुला भी दिया और बेक़रार भी हूँ ..